Eye, Skin and Tissue Donations

देहदान – अवयवदान  के बारे  मे  संक्षिप्त  जानकारी

  1. देहदानमाने पारंपारिक अंतिम संस्कार तथा क्रिया कर्मोकी विधी को छोडकर समुचित मानव समाज के कल्याण हेतु किया हुवा सकारात्मक महाधार्मिक दान।
  2. 18 से125 वर्ष के अन्तर्गत उम्र वाले कोई भी व्यक्ति ( महिला अथवा पुरुष) की “ प्राकृतिक मृत्यु ” पश्चात ही देहदान सम्भव है ।
  3. रजिस्ट्रेशनकिये बगैर भी नजदीकी रिश्तेदार की सहमती से देहदान सम्भव है।
  4. ह्रदय विकार, कॅन्सर  (Cancer in Basic stage) से मृत व्यक्तीका देहदान हो सकता है ।
  5. प्राकृतिक मृत्यु पश्चात देहदान करने से त्वचा, हड्डीयां, नेत्र परदा (Cornea), ह्रदयके व्हॅाल्व, मुख्य रक्तवाहीनीयॉँ जैसे टीश्यूओंका ईस्तेमाल हो कर कई लोगोंकी जान बचा सकते है, और कइयोंका जीवन जीने योग्य बना सकते है।
  6. नेत्र व त्वचा का दान आपके घर पर, या मृत्यु अस्पताल मे हुवी हो तो अस्पताल मे होगा। ईस के साथ संपूर्ण देहदानप्रक्रिया मृत्यू पश्चात छ: घंटों के अंदर पूर्ण होना अनिवार्य है ।अत: परिवार ने शोक व्यक्त करने के पहले तुरंत नेत्र तथा त्वचा बँक को बुलाकर दान देना उचित होगा।
  7. देह स्वीकार करने के लिए कोई भी संस्था अथवा सरकारी अस्पताल के लोग आपके घर नही आते है। मृत देह कोनिकpट रिश्तेदारों द्वारा नजदीकी शासकीय मेडिकल कॉलेज में अपने खर्चे से पहुचाना होता है।
  8. देहदानके समय सरकारी अस्पताल मे फॉर्म 4(A) [death certificate in “prescribed format” by Municipal Corpo. stating cause of death]  के सिवाय देह को स्वीकार नहीं किया जाता।
  9. देहदान माने ‘संपुर्ण’ शरीर का दान। धार्मिक विधीके लिए  देहदाता के शरीर का कोई भी अंग (अंगुली या अंगुठा) रिश्तेदारों को प्राप्त नहीं हो सकता है । संपूर्ण देहदान के ऊपरांत भी धार्मिक विधी अथवा क्रिया कर्म किये जा सकते है ।
  10. एडस, हिपेटाईटीस-बी,पिलीया, डेंग्यू, टीबी, गॅँगरीन आग से जलना बेड सोअर्स or septicemia , की स्थितीमे से या खुदकुशी, अपघाती मृत्यू जिसमे शव विच्छेदन (postmortem)  करना पडे ऐसी स्थिती मे देहदान नही कर सकते ।
  11. मोटापा या 120 किलोसे ज्यादा वजन के व्यक्ति का देहदान नही हो सकता ।
  12. नेत्रदान, त्वचा दान के लिये ऊम्र, लिंग, रक्त गट की कोई मर्यादा नही है।
  13. मोतीबिंदु( catract ) के ऑपरेशन होने के बावजुद भी नेत्र दान कर सकते है।
  14. रक्तचाप,(Blood Pressure/Hypertension)मधुमेहके मरीज नेत्रदान कर सकते है ।
  15. मोटे कांच अथवा बडे नंबर के चष्माधारीव्यक्ति तथा ‘अंध व्यक्तिभी नेत्रदान कर सकते है।’
  16. देह दान(Body donation) अवयव दान (Organ donation) इन दोनो प्रक्रिया में काफी फर्क है ।
  17. देहदानमें हृदयगति (Heart) पूर्ण तरह बंद होकर शरीर के सारे अवयव मृत होते है। मृत अवयवोंका रोपण (Transplantation) नही हो सकता। इस अवस्था मे मुख्यत: नेत्रका पटल (Cornea), त्वचा(Skin),  जैसे टिशू (Tissues) एवम् हड्डीयों का इस्तेमाल हो सकता है।
  18. अवयव दान प्रक्रिया में(Organ Donation), व्यक्तिका मस्तिष्क मृत होनेसे(Brain-dead) व्यक्तिकी मृत्यु तो हुई, किंतु ह्रदयसंचलन कृत्रिम ऊपकरणों द्वारा (Ventilator) चालू रखा जाता है । जिसकी वजहसे रक्त संचार चालू रह कर शरीरके अवयव कुछ समय के लिये जीवित रखे जाते है। इसे मस्तिष्कस्तम्भ मृत्यु (Brain stem death) कहते है ।
  19. जीवित रखे हुवे अवयव लाभार्थी के शरीर मे आय सी यु मे प्रत्यारोपीत किये जाते है। इस अवस्थामे आंखत्वचा जैसे स्नायू रक्तवाहीनीयोंके साथ ह्रदय, यकृत ,मूत्रपिंड, आँतें,किडनी जैसे अवयवों का जरुरतमंद व्यक्तीयोंके उपर प्रत्यारोपन (Implant) करके कम से कम 13 व्यक्तियोंको जीवन दान मिल सकता है ।
  20. जीवित व्यक्ती रक्तदानवा किडनी दान कर सकते है, किन्तु नेत्रदान देहदान मृत्युके बादही सम्भव होगा इस लिये अपने परिवार को आपके अन्तिम ईच्छा के बारेमे जानकारी देना ऊचित होगा, ता की वह आपकी “अन्तिम इच्छा”  पूर्ण कर सके।
  21. देहदान को सभी धर्मो मे मान्यता है। दरअसल धर्म का मूल आधार ही त्याग है।
  22. देहदान सर्वश्रेष्ठ अंतिम दान है ।देहदान यह ऐसा रास्ता है जिस पर बहुत ही कम लोग चलते हैं। अब कुछेक लोग अंगदान, देहदान करने के लिए आगे आने लगे हैं, मगर हकीकत मे ऐसे लोगों की तादाद अब भी बहुत कम है। इसकी मूल वजह यह है; कि हमारी धार्मिक मान्यता और हमारे सामाजिक संस्कार हमें अंगदान और देहदान करने नहीं देते हैं। धार्मिक मान्यता यह है कि जो व्यक्ति मर गया, उसकी अंतिम क्रिया भी होनी चाहिए। याद रहे, देहदान यह भी एक अंतिम क्रिया ही है। मुक्ती का महाधार्मिक अंत्य संस्कार है।
  23. मृत्यू हर किसी की निश्चित है । समय और प्रकार निश्चित नही; अत: ब्रेनडेथ की संभावना बहुत कम होने के कारण देहदाताओंने देहदान एवम् अवयव दान दोनो के लिये अपनी “अन्तिम इच्छा” व्यक्त करना उचित होगा । क्या पता ईस प्रकार की भावना रखनेसे हमारा जीवन अधिक सुखप्रद हो !

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